लेखनी कहानी -04-Nov-2023
प्राकृतिक सौंदर्य का मानवीकरण कविता :
नीला-नीला ये नभ रहे विस्तारित ज्यों,
धरा पर पितृ छाया का ज्यों आभास लगे।
भूरे गुलाबी काले सफेद रंग बदलते मेघ,
बने- ठने सेठ कोई कोट पहने जल के भरे।
श्वेत हिम आच्छादित अविचल पर्वत खड़े,
दृढनिश्चयी योगी कोई ज्यों साधनारत रहे।
धीर गंभीर धरा ये भार वहन सदा है करे,
धैर्यपूर्वक माँ ज्यों परिवार का पोषण करे।
खारा सागर अथाह कितने गहन राज भरे,
मानव मनगहनता का अपार भाव ज्यों धरे।
ऊँचे-ऊँचे फलित वृक्ष ये खड़े हैं हरे-भरे,
गुणों से भरपूर विनम्र ज्ञानी रहे शांत बड़े।
पर्वतों से निकलती नदियाँ बहें बलखाती,
रूपसी कोई ज्यों अमृत घट लेकर यूँ चले।
सांय-सांय चले पवन कभी हो जाए मौन,
प्रेयसी कोई वाचाल तो कभी मौन व्रत धरे।
श्रृंगारित पुष्प लताएँ मंद - मंद मुस्कुराएं,
लहराती फसलें लगे मानव के ही रूप धरे।
रंग बिरंगे फूलों की मनमोहिनी ये दुनिया,
जीवन की कला सिखाती शिक्षिका लगें।
रवि शशि,तारे चमक हैं सभी यूँ बिखरते,
कामयाबी हेतु हम भीअंधेरों से संघर्ष करें।
© ® उषा शर्मा
जामनगर (गुजरात)
Shashank मणि Yadava 'सनम'
05-Nov-2023 08:24 AM
बहुत ही खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति
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Gunjan Kamal
05-Nov-2023 07:14 AM
👌👏
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